श्री गुसांईजी के पद


श्री गुसांईजी :
१)
रामकाली :-

श्री वल्लभ सूत के चरण भजो। नंदकुमार भजन सुख- दायक पतितन पावन करण भजो।
दूर किये कलि कपट वेद विधि मत प्रचंड विस्तरण भजो ।अतुल प्रताप महिमा श्याम यश ताप शोक अध- हरण भजो। पुष्टि मार्यादा भजन सुख सीमा निज जन पोषण - भरण भजो।' नंददास' प्रभु प्रकट भये दोऊ,श्री विट्ठलेश गिरधरन भजो।4।।

अर्थ--
हे मन ! तू श्री वल्लभ सूत के चरणों को भज कर,
श्री नंदबाबा के कुमार श्यामसुंदर का गुनगान कर, जो समस्त सुखो को देने वाले हैं और पतितो को पावन करने वाले हैं । प्रभु गुनगान वेद के प्रचंड मत के अनुसार कलयुग में छल कपट को दूर करने वाला है । "भगवान श्री कृष्ण " का प्रताप अतुलनिय है, संसार की दुख रूपी तपन और शोक को दूर करने वाला है। पुष्टिमत की मर्यादा के अनुसार,प्रभु के इस गुनगान से प्राप्त सुख की कोई सीमा नहीं है। नंददास जी कहते हैं की " प्रभु विट्ठल और गिरिराज धरन दोनों एक ही है, साक्षात प्रगट हुए है तू इनका भजन कर। "

२)
भैरव:-
जय -जय -जय श्रीवल्लभनंद। सकलवकला वृंदावन- चंद । बाणी वेद न लहै पार । सो ठाकुर श्रीअक्काजी द्वार
शेष सहस्त्र मुख करत उच्चार । व्रज जन - जीवन,प्राण- आधार।श्री भागवत रस गूढ़ प्रकाश । निज भक्तनकी पूरी आश।लीला ले गिरी धार्यो हाथ।'छीतस्वामी' श्रीविट्ठलनाथ।5।।
:
अर्थ--
कोटि कलाओं से युक्त वृंदावन के चंद्रमा श्री वल्लभनंदन की जय हो।जिनका बखान करते वेद भी पार नहीं पाते। वे ठाकुर श्री अक्काजी के द्वार में विराजमान है, शेषनाग अपने सहस्त्र मुखों से उनका गुनगान कर रहे हैं। वे बृजवासी जनों के जीवनाधार है, उन्होंने श्री भगवत के गूढ़ रस का प्रकाश कर निज भक्तों की आशा पूरी की है, लीला करते हुए गोवर्धन को धारण किया । छीतस्वामी कहते हैं की ऐसे हमारे प्रभु विट्ठलनाथ है।