जन्माष्टमी के कीर्तन


१) राजभोग, राग-असावरी :-



गावो गावो मंगल चार वधावो नंदके। आवो आंगन कलश साजिके दधि फल नौतन डार वधावो नंदके।

उरसों उर मिलि नंदराय गोप सबै निहारी। मागध सुत बंदीजन मिलिके द्वार करत उच्चारी।

पायो पूरन आस करी सब मिलि देत असीस। नंदरायको कुँवर लाडिलो जीवो कोटि बरीस।

तब व्रजराज आनंद मगन मन दीने वसन मंगाय। ऐसी शोभा देखिके जन 'सूरदास' बलि जाय ।।



अर्थ- आओ नन्द बाबा के यहाँ बधाई हेतु मंगलाचार के गीत गाओ। चौक में सुन्दर मंगल कलश को स्थापित करो, दूध, दही, फल एवं नई डालियों से नंदरायजी को बधाई दो। श्री नंदराय जी सभी ग्वालों पर प्रसन्न हो रहे हैं, हृदय से लगाकर, प्रसन्न चित देख रहे हैं। मागध, सूत, भाट एवं चारण सभी दीर्घायु का आशीर्वाद दे रहे हैं कि मनोरथ पूर्ण करने वाले नंद के पुत्र करोड़ों वर्ष जिएँ। ब्रज के राजा ने आनंद में मग्न होकर वस्त्रों को मंगवा कर दान दिया है। श्रीसूरदासजी दर्शन की शोभा पर न्योछावर हो रहे हैं।



 



2) राग धनाश्री :-

जसोदा सोबन फूलैं फूली । तुम्हारे पूत भयौ कुल-मंडन वासुदेव सम तूली ।

देत असीस बिरध जे ग्वालिनि गाँव-गाँव तें आई। लै लै भेंट सबै मिलि निकसी मंगलचारू बधाई।

ऐसे दसक होहिं जो औरें सब कोऊ सचु पावै। बाढ़ौ वंश नंद बाबा कौ 'परमानंद 'जिय भावै ॥



अर्थ- जिस प्रकार वन में फूल खिलकर, प्रसन्नता प्रकट करता है, उसी प्रकार यशोदा जी अतिप्रसन्नता में झूल रही हैं। वासुदेव के तुल्य कुल-भूषण पुत्र का जन्म हुआ है। गोकुल के आसपास के गाँवों से बहुत सी ग्वालिनें आकर के गुणगान युक्त आशीर्वाद दे रही हैं। सुन्दर से उपहार लेकर के वे मंगलाचार करती बधाई दे रही हैं। सबको ऐसा ही आनंद व सुख मिले। नंद बाबा का वंश बढ़े। इस प्रकार श्रीपरमानंददासजी गुण गान कर रहे हैं।



 



3) राग धनाश्री :-

जसोदा, तेरौ चिरजीवहु गोपाल । बेगि बढ़े सहित बिरध लट, महरि मनोहर बाल ।

उपजि पश्धौ सिसु कर्म-पुन्य-फल, समुद-सीप ज्याँ लाल। सब गोकुल कौ प्रान-जीवन-धन, बैरिनि कौ उर-साल ।

'सूर'किती जिय सुख पात्रत हैं देखत श्याम तमाल। रज आरज लागौ मेरी आँखिनि रोग-दोष-जंजाल ।।



अर्थ- हे श्रीयशोदाजी! आपका गोपाल दीर्घायु हो। हे महारानीजी! यह मनोहर बालक तुम्हारी विरूदावली के साथ शीघ्र बड़ा हो। जिस प्रकार सीप से मोती उत्पन्न होता है, उसी प्रकार आपके पुण्य के फल स्वरूप ये लाल उत्पन्न हुआ है। यह सारे गोकुल का प्राण जीवन और धन है तथा शत्रुओं के हृदय के लिए कष्ट है। श्रीसूरदासजी कहते हैं कि, "प्रभु को घुटनों पर चलते देख नेत्रों को अत्यंत सुख प्राप्त होता है। प्रभु के रोग दोष एवं जंजाल को, मैं मेरी आँखों की पलकों से झारती हूँ।"



 



4) राजभोग दर्शन ,राग - सारंग :-

आजु नंदराय के आनंद भयो । नाचति गोपी करति कुलाहल मंगलचारु ठ्यो ।

राती पियरी चोली पहिरें नौतन झूमक सारी। चोबा चंदन अंग लगाये सैदर माँग संवारी।

माखन दूध दृढो भरि भाजन सकल मवाल ले आए। बाजत बेन विधान महुवरि गावति गीत संचारी।

हरद, दूब अच्छित दधि कुमकुम आँगन बाड़ी कीच तारी दै दै हँसत परस्पर लागि लागि भुज बीच।

कबहुँ बेद-धुनि करत महामुनि पंच सबद ढमढोल। 'परमानंद 'फिरत गोकुल में आनंद हृदय कलोल ॥



अर्थ- आज नंद बाबा के यहाँ आनन्द हो रहा है। गोपियाँ नाच रही हैं, मंगल गान हो रहा है। गोपियाँ लाल चोली, नवीन झुमके व साड़ी पहने हैं, अंगों पर चोवा, चंदन लगाया है, सिन्दूर से मांग को सजा रखा है। सभी ग्वाल मक्खन दूध एवं दही के पात्र भर कर लाये हैं। वेणु-विषाण, बांसुरी, श्रृंग वाद्य तथा महुअर आदि बाजे बज रहे हैं और सुहावने गीत गाये जा हैं, और हल्दी, दूब, चावल दही एवं कुंकुम का तो कीचड़ हो गया है। परस्पर तालियाँ बजाकर और भुजाओं में भरकर मिलते हुए हँस रहे हैं। नगाड़े की आवाज के मध्य महामुनि वेद पाठ कर रहे हैं। श्रीपरमानंदजी कहते हैं कि पंच शब्दी बाजे बज रहे हैं, कभी मुनिजन वेद पाठ करते हैं। प्रसन्न हृदय से गोकुल में विचरण कर रहे हैं।



 



5) राग सारंग :-

गोकुल में बाजति कहाँ बधाई। भीर भई है नंद के द्वारें अष्ट महासिद्धि आईं।

ब्रह्मादिक इंद्रादिक जाकी चरन-रेनु नहिं पाई। सोई नंद कौ पूत कहावत कौतुक सुनु मेरी माई।

ध्रुव अंबरीष प्रहाल्द बिभीषन नित नित महिमा गाई । सो हरि 'परमानंद 'कौ ठाकुर ब्रजजन केलि कराई ।।



अर्थ- गोकुल में बधाई कहाँ बज रही है? नंद बाबा के द्वार पर भीड़ हो रही है मानों आठों प्रकार की सिद्धियाँ आ गई हैं। जिस की चरण रज को ब्रह्मा, इन्द्र आदि देव भी नहीं पाते। वही नंद बाबा के पुत्र कहलाते हैं, यह कैसा आश्चर्य है। जिस श्रीप्रभु की महिमा अंबरीष, प्रह्लाद आदि भक्त नित्य प्रति गाते हैं। वहीं प्रभु श्रीपरमानंददासजी के स्वामी होकर ब्रजवासियों को खेल खिलाते हैं।



 



6) राग सारंग :-

नंद-गृह बाजति आज बधाई । जुरि आई सब भीर आँगन में जन्में कुँवर कन्हाई ।

सुनत चलीं सब ब्रज की सुंदरि कर लिए कचन थाल । कुमकुम केसरि अच्छित श्रीफल चलति ललित गति चाल।

आज भइया यह भली भई है नंद-घर ढोटा जायो। हृदै कमल फूल्यो जु हमारी सुनत बहुत सुख पायो।

दान मान विप्रनि बहु दीन्है सबकी लेत असीस। पुहपनि वृष्टि करत 'परमानंद 'सुर जु कोटि तेंतीस ॥



अर्थ- नंद बाबा के घर आज बधाई बज रही है। कुँवर-कन्हैया का जन्म हुआ है सो आँगन में भीड़ इकट्ठी हो रही है। सुनते ही सभी ब्रज सुन्दरियाँ हाथों में सोने के थाल ले कर चल पड़ी। कुंकुम, केसर, चावल, नारियल से सजाकर सुन्दर चाल से चली आ रही हैं। हे भाई! आज नंदबाबा के यहाँ पुत्र उत्पन्न हुआ है। जन्म की सुनते ही सुख उत्पन्न हुआ है, हृदय रूपी कमल प्रसन्न हुआ है। सम्मान के साथ ब्राह्मणों को बहुत दान दिया है एवं आशीर्वाद प्राप्त किया है। श्रीपरमानंदजी कहते हैं कि, “तैंतीस करोड देवता पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं।"



 



7) राग सारंग :-

नंद! बधाई दीजै ग्वालनि। तुम्हारेस्याम मनोहर आए गोकुल के प्रतिपालनि ।

गोपिनि बहुविध भूषन दीजै विप्रनि दीजै गाइ । गोकुल मंगल महामहोच्छौ कमलनयन ब्रजराइ ।

नाचहिं गोपी औरु ग्वाल सब गावहिं गीत रसाल। 'परमानंद 'प्रभु तुम चिरजीवहु नंद गोप के लाल ।। 

अर्थ- हे नन्द बाबा ! गोपियों को जन्मोत्सव पर बधाई दीजिए। गोकुल की रक्षा हेतु श्याम मनोहर का प्राकट्य हुआ है। गोपियों को बहुत आभूषण एवं ब्राह्मणों को गायें दीजिए। हे ब्रज के राजा! कमल नयन के जन्मोत्सव पर गोकुल में बहुत बड़ा मंगल उत्सव हो रहा है। गोपी ग्वाल सभी नाच रहे हैं। आनन्द में ओत-प्रोत होकर गा रहे हैं। श्रीपरमानन्ददासजी कहते हैं कि "हे श्रीनंदलाल! आप दीर्घायु हो।"



 



८) मालव:- (गौरी) :-

पद्म धरयाँ जिन ताप निवारन चारि भुजा चारि आयुध लै नारायन भू-भार उतारन।

चक्र सुदर्सन धरयो कमल-कर, भगतनि के रच्छा के कारन। संख धरयो रिपु-हृदै विदारन गदा धरी हैदुष्टन-सँघारन।

दीनानाथ दयाल जगत- -गुरु, आरति हरन भक्तनि-चिंतामनि ।

'परमानंददास' कौ ठाकुर भूतल काज करे भगतनि पनि ॥



अर्थ- जिन्होंने कमल का फूल धारण करके भक्तों के ताप को दूर करने का संदेश दिया है, विश्व में जीवों के कष्टों को दूर करने के लिये नारायण ने चारों भुजाओं में चार अस्त्र-शस्त्र धारण किये हैं। भक्तों की रक्षा के लिये कमल तुल्य हाथ में, प्रभु ने चक्र धारण किया है, शंख-शत्रुता करने वालों के हृदय को दहलाने के लिये धारण किया है। गदा दुष्टों को नष्ट करने के लिये धारण की। प्रभु दीनों के स्वामी हैं, दयालु हैं ऐसे प्रभु चिंता हरने की मणि हैं। श्रीपरमानंदजी के प्रभु विश्व कल्याण के कार्य के लिये अवतरित हुये हैं।



 



९) राग धनाश्री :-

अँधियारी भादौं की रात। बालक हित वसुदेव देवकी, बैठि बहुत पछितात ।

बीच नदी, घन गरजत बरषत, दामिनि काँधति जात। बैठत-उठत सेज-सोवत मैं कंस-डरनि अकुलात।

गोकुल बाजत सुनी बधाई, लोगनि हियँ सुहात। 'सूरदास' आनंद नंद कँ, देत कनक नग दात ॥ 



अर्थ- भादों महीने की अंधकार मयी रात्रि है। श्रीवसुदेवजी और श्रीदेवकीजी बैठे हुए बालक के लिये बहुत पश्चाताप कर रहे हैं। बीच नदी, मेघ गर्जना करके वर्षा कर रहे हैं, और बिजली कौंधती जा रही है, वे दोनों बैठते-उठते और लेटते हुए कंस के भय से व्याकुल हो रहे हैं। गोकुल में बजती हुयी बधाई को सुनकर लोगों को हार्दिक सुख मिला।

श्रीसूरदासजी कहते हैं कि श्रीनंदबाबा के यहाँ आनंद हो रहा है और वे सोने और रत्नों का दान कर रहे हैं।



 



१०) राग कान्हरो :-

धन्य रानी जसुमति गृह आवत गोपीजन।

बासर ताप निवारन कारन बारंबार कमल मुख निरखन।

चाहत पकर देहरी उलंघन किलकि- किलकि हुलसत मनही मन ।

राई लोन उतारि दुहूँ कर वारि फेरि डार तन मन धन।

लाले लेत उछंग चाँपत हियौ भरि प्रेम विवस लागे द्रग ढरकन ।

लै चली पलना पौढ़ावन कौं अरकसाय पौढ़े सुंदर घन ।

देत असीस सकल गोपीजन चिरजीयौ लाल ज्यौं लौं गंग जमन । 'परमानंददास' को ठाकुर भक्तवत्सल भक्तन मनरंजन ॥



अर्थ- यशोदा रानीजी के घर-बधाई हेतु गोपियाँ आ रही हैं। दिनभर के विरहाग्नि ताप को दूर करने के लिये बार-बार प्रभु का मुखारविंद दर्शन कर रही हैं। किसी सहारे को पकड़ कर देहरी लांघना चाह रहे हैं, किलकारियाँ भरकर, मन ही मन प्रभु अति प्रसन्न हो रहे हैं। किसी की नजर ना लगे, मैया दोनों हाथों से राई लोन उतार रही है, एवं तन- मन-धन न्योछावर कर रही है। लाला के कूदी लगाने की चेष्टा करने से हृदय में घबराहट सी होती है। हर्ष के कारण प्रेमवश आँखों से अश्रु आते हैं। मैया लाला को पलना में पोढ़ाने के लिये ले जाती है, प्रभु पौढ़ने में आलस्य कर रहे हैं। जब तक गंगा-यमुना भूतल पर हैं तब तक प्रभु जीवे-इस प्रकार प्रभु के दीर्घायु का आशीर्वाद गोपियाँ देती  हैं। श्रीपरमानंददासजी के प्रभु भक्तों के वत्सल हैं, भक्तों के मन को प्रसन्नता देने वाले हैं ॥