गोवरधनगिरि सघनकंदरारैननिवास कियो पियप्यारी ||
उठचले भोर सुरत रंगभीनेनंदनंदन वृषभान दुलारी || १ |
|इत बिगलित कुचमाल मरगजीअटपटे भूषन रगमगी सारी ||
उतही अधर मसि पाग रहीधसि दुहूँदिश छबि बाढि अतिभारी || २ ||
घूमत आवत रतिरणजीते करिनिसंग गज गिरिवरधारी ||
चतुर्भुजदास निरख दंपतिसुखतनमनधन कीनों बलिहारी || ३ ||
अर्थ-- प्रिया प्रियतम ने श्री गिरिराज जी की सघन कंदरा में रात्रि विश्राम किया है। आनंद के रंग में डूबे हुए श्री कृष्ण और श्री राधा जी प्रातःकाल उठकर के चले हैं।इधर स्वामिनी जी के बाल उल्झे हुए हैं, माला मुरझाई हुई है, अस्त- व्यस्त साडी और आभूषण हो रहे हैं। उधर प्रभु की पगड़ी अस्त-व्यस्त होने से उनकी शोभा भी अत्यन्त बढरही है, प्रभु घूमते हुए पधारे, कामदेव की सेना से जीते हुए का सुख देकर श्रीराधा जी के साथ ऐसे ही शोभित हैं जैसे मदमस्त हाथी हथनी के साथ शोभित होता है। युगल छवि का सुख देखकर चतुर्भुजदास जी तन-मन-धन न्योछावर करते हैं।