अभ्यंग के पद " स्नान


करत शृंगार मैया मनभावत ।
शीतल जल उष्ण कर राख्यो ले लालन को बैठ न्हवावत ।।१।।
अंग अंगोछ चोकी बैठारत प्रथमही ले तनिया पहरावत ।देखो मेरे लाल ओर सब बालक घरघर ते कैसे बन आवत ।।2।।
पहरो लाल ञगा अति सुंदर अखीया अंजके तिलक बनावत ।सूरदासप्रभु खेलत आंगन लेत बलैया मोद बढावत ।।3।।

अर्थ -- मइया यशोदा श्रीकृष्ण को स्नान कराने के लिये जल सुहाता गर्म करके बैठी हैं, स्नान करा श्रीअंग पर तनिया धराते हुये कह रहीं कि देखो लाल सब ग्वालवाल अपने अपने घर के सज कर आ गये। अब मैया ने भी सुन्दर वस्त्र पहना, आँखों में काजल, माथे पे तिलक और आभूषण पहना कर कन्हइया का श्रंगार करा और फिर आंगन में खेलते हुये देख देख प्रभु की बलायें ले रहीं, नजर उतार रहीं। यह दृश्य देख कर सूरदासजी आनंदित हो रहे हैं।