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प्रबोधिनी एकादशी

कार्तिक सुद एकादशी के दिवस चार मास से पोढ़े हुए प्रभु के लम्बी नींद से जगाने की एकादशी है, जिसको प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और इस कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे।
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वामन द्वादशी:-

भादरवा सुद बारस वामन जयंती को पुष्टि मार्ग मंदिर में दोपहर 12 बजे राजभोग हो जाने के बाद जन्म के वक़्त शालिग्रामजी को पंचामृत से स्नान होता हे। रसदान और परकीया के मनोरथ पूर्ण करने की भावना से श्रीमस्तक पर किरीट मुकुट और केसरी धोती उपरणा और मत्स्याकृति कुंडल धराये जाते है। और क्योंकि वामनजी ब्राह्मण स्वरूप से पधारे है, इस लिए उसदिन सोने की और मोती की दो जनोई धरायी जाती है।
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राधा-अष्टमी

श्रीकृष्ण के विहारस्थल गोलोकधाम में श्रीगोलोकेश्वरी के नाम से जो विद्यमान है, जो स्वयं श्रीकृष्ण का ही दूसरा रूप प्रकृति स्वरूप हैं, जो स्वयं ब्रह्मस्वरूप, नित्य और सनातन हैं, इन श्रीराधाजी का प्राकट्य प्रभु के प्राकट्य के दो वर्ष पूर्व भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन हुआ। राधा अर्थात :- समृद्धि, धृति(प्रकाश) ,कृष्ण कार्य साधिका और, कृष्ण भक्ति प्रदायिनी श्रीगोविन्द नंदिनी, गोविन्द प्रेम पूरनी, गोविन्द मोहनी, श्रीगोविन्द सर्वस्व, सर्व कला कांता शिरोमणि कृष्ण आल्हाद दायिनी रस शक्ति प्यारी श्री राधिके हैं। जो मात्र श्री कृष्ण के सुख हेतु ही इस भूतल पर पधारी हैं।
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श्री जन्माष्टमी का महोत्सव-

श्रीमदाचार्यचरण श्रीमहाप्रभुजी की दृष्टि से सिर्फ़ साधनहीन- नि:साधन पुष्टि जीवो को परमफल का दान करने ही श्रीपुष्टिपुरुषोत्तम श्रीमद् गोकुल में प्रकट हुए है।
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पवित्रा ग्यारस:-

संवत् १५४९ की श्रावण सुद एकादशी के दिन गोविंद घाट पर श्री महाप्रभुजी को दैवीजीव के उद्धार की चिंता हुई, तब श्री महाप्रभुजी को चिंतामुक्त करने हेतु वहां मध्यरात्रि को प्रभु ने साक्षात प्रकट हो के दैवी जीवों को ब्रह्मसम्बंध मंत्र देने की आज्ञा करी। तब सब जीवों की ओर से श्री महाप्रभुजी ने श्रीजी को सूत का पवित्रा धराया और मिश्री भोग धराया और "मधुराष्टकम" से प्रभु की स्तुति की।
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रामनवमी

अयोध्या का सिंहासन शून्य होने जा रहा था क्यों कि दशरथजी ने तीन विवाह किए तथापि रघुवंश आगे नहीं बढ़ रहा था तब अपने कुलगुरु श्रीवशिष्ठ जी की शरण ली और गुरुकृपा से पुत्र कमेष्टि यज्ञ संपन्न हुआ और चैत्रमास के मध्यान्ह काल में सुन्दर नवमी तिथि अर्थात पूर्ण तिथि के दिन मधुमास वसंत के समय मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामलला का प्रागट्य हुआ जो पूरे हिंदुस्तान आर्यावर्त की पूर्ण संस्कृति एवं आदर्श अपने अन्दर समेटे हुए हुआ, मानो जीवन आदर्श का सूर्य प्रक
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गंगा दशाहरा

ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगाजी का आगमन हुआ था। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की यह दशमी एक प्रकार से गंगाजी का जन्मदिन ही है। इस दशमी को गंगा दशहरा कहा जाता है। आज ही के दिन महाराज भागीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगाजी आई थीं।
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देवशयनी एकादशी

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन से भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर चार माह बाद जब उन्हें उठाया जाता है उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास (वर्षा ऋतु) कहा गया है।पुराणों में वर्णन आता है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार मास पर्यन्त (चातुर्मास) पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं।
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दान एकादशी

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी, दान एकादशी कहते हैं |उस दिन से 20 दिनों तक परात्पर आनंद प्रभु श्रीकृष्ण ने दानलीला का अद्भुत खेल गोपिओं के संग प्रारम्भ किया। इस दान लीला में प्रभु ने संकरी खोर और दानघटी के स्थलों पर गोवर्धन के शिखर और तरेहटी पर गोपीजनों के मार्ग को रोक कर यह कहते हुए कि मैं इस व्रज का राजा हूँ और आप कंस को कर के रूप में दही मक्खन इत्यादि गोरस दे आओ यह उचित नहीं........
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गोवर्धन पुजा

भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं और गोप-ग्वालों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत पर पहुँचे तो देखा कि वहाँ गोपियाँ कई प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच-गाकर उत्सव मना रही हैं।
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चतुर्मास का माहात्म्य

चतुर्मास का समय प्रकृति के लिए जैसे पुनर्निर्माण का समय होता है। इन दिनों भगवान् श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं। और वर्षाजल से अभिसिंचित हो कर पृथ्वी वनस्पतियों का उत्पादन करके स्वयं को और जीव को पोषण की व्यवस्था के लिए तैयार करती है।
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अक्षय नवमी

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आमला नवमी (आंवला वृक्ष की पूजा परिक्रमा), आरोग्य नवमी, अक्षय नवमी, कूष्मांड नवमी के नाम से जाना जाता है। अक्षय नवमी को ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा करके इंद्र योग बंध कराने क्रान्ति का शंखनाद किया था। और सात दिन के संघर्ष के पश्चात इंद्र को ज्ञान हुआ की साक्षात् पूर्णपुरुषोत्तम प्रभु ही श्री नंदरायजी के यहाँ प्रकट हुए हैं, और उनके सामने मद और द्वेष करना उचित नहीं है।
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गीता जयंती

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन श्रीमद् भगवद् गीता का जन्म भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था।श्रीमद् भगवद् गीता याने श्री कृष्ण के मुखमंडल से निकला हुआ माधुर्य और वांग्मय सौन्दर्य का स्वरुप। व्रज में श्री कृष्ण ने अपनी ‘प्रेममुरली’ से व्रज वासियों को मुग्ध किया, तो द्वारिका में श्री कृष्ण ने अपनी ‘ज्ञानमुरली गीता’ से विषाद युक्त अर्जुन को स्वधर्म के लिए प्रेरित कर शरणागति मे स्थिर किया। इस ज्ञानमुरली ने तब से लेकर अब तक के सर्वज्ञानी, कर्मयोगी, भक्त, महात्मा, संत, ऋषि, सेवक... सभी को मुग्ध किया है।
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नव विलास

आसों(क्वांर)सुद पड़वा से आसों सुद दशमी तक पुष्टिमार्ग में ललिताजी के सेवा मास का आरंभ होता है जिसमें आसों सूद पड़वा से आसों सूद दशम तक नव-विलास, प्रभु विरह के ताप में श्री स्वामनिजी ने सखियो के साथ का प्रभुमिलन के लिए व्रत किया है। नव प्रकार के भक्त और एक निर्गुण भक्त के भाव से ये दस दिन की लीला है।
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गणेश चतुर्थी

भाद्रमास की चतुर्थी को पार्वतीनंदन का जन्मदिन मनाते हैं, पार्वतीनंदन के बारे में कई कथायें हम सब ने सुनी हैं, अतुलनीय बुद्धि-विवेक के स्वामी होने से प्रथम पूज्य और गणाधिपति हैं जिससे भक्त जन इनके गणेश, गणपति आदि अनेकों नाम श्रद्धा से लेते हैं। गणेश उत्सव चतुर्थी से आरंभ हो कर चतुर्दशी तक मनाया जाता है।
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