हिंडोला कीर्तन


झूलत गोकुलचंद हिंडोरे झुलावत सब व्रजनारी।
संग शोभित वृषभान नंदिनी पेहेरे कंसुभी सारी।।१।।
पचरंगी डोरी गुहिलानी डांडी सरस संवारी।आसकरण प्रभु मोहन झूलत गिरिगोवर्धनधारी।।२।।

अर्थ-- हिंडोला के शुभमंगल दिनों में गोकुल के चंद्र श्री कृष्ण को वृज की गोपांगनायें हिंंडोला झुला रही हैं, श्री भगवान के साथस्वामिनीजी केसरिया साडी पहन शोभायमान हो रहीं हैं।हिंडोला की डोरी सुंदर पांच रंगों के संयोजन सेे संवार कर इसी आसा से बनाई गई थी कि मन को मोहित करने बाले श्री गिरिराजजी को धारण करने वाले प्रभु इसमेें विराज कर हमारी आस पूर्ण करेंं।

२)सखि जुरी आई श्यामघटा ।
दामिन दमकत दादुर डाकत बोलत नवल छटा।।१।।
अब कैसें आवेंगे प्रीतम जब बरसेंगे मेह।
सगरे दिन रहीहे एकधारा कैसे व्हैहे नेह।।२।।
कौन जतन सों प्रात होयगो केसें कलाप रहे।
श्री विट्ठलनाथ गिरधर बिन आये कैसे धों ये करहे।।३।।

अर्थ-- वृजनारियां आसमान में छाये बादलों को देेख कहती हैं.. सखी कैसी श्यामघटा छाई है!बिजली चमक रही और दादुुर आदि नऐ नऐ राग अलाप रहे, ऐसा लगता कि बहुत जोर से बारिश होगी अब ऐसे में हमारे प्रीतम प्रभु कैसे आयेंगे ! और ऐसी एक समान तेज पानी की धारा में कैैसे नेह होगा क्या ऐसे कलपते हुऐ ही सुबह होगी, श्री गिरधारी विट्ठलनाथ के न आनेे पर हम किस प्रकार प्राणों को धारण रख सकैंगी।।