जीवन का यथार्थ लक्ष्य - "सहजता और आनंद


प्रभु के बनाए इस जगत में ऐसा एक भी मनुष्य या जीव नहीं है, जिसको दुःख नहीं है। और कोई जीव एेसा भी नहीं जिसको सुख की चाह नहीं है। और जो सुख की प्राप्ति के लिए सदैव प्रयत्नशील ना हों। फिर चाहें वो अमीर- ग़रीब ,छोटा-बड़ा, आस्तिक-नास्तिक,अनपढ़- शिक्षित, उच्चकोटि-नीचकोटि, कोई भी हो। हरेक जीव मात्र को सुख की चाह रहती है।

क्या है सुख-दुःख ?:-अगर हम गहराई से सोचें तो समझ आएगा, कि हमारी जितनी भी सुख की चाह है, किसी भी प्रकार की,किसी भी कक्षा की, वो सभी शरीर तक और शरीर से मन तक ही सीमित है।और ये सभी सुख की प्राप्ति के लिए हमें किसी ना किसी लौकिक साधन ( वस्तु, व्यक्ति..) की ज़रूरत पड़ती ही है।पर क्योंकि ये शरीर और लौकिक साधन, दोनो ही नाशवंत है।

इसके कारण उससे पाया हुआ सुख का भी नाश होता है। और जब ये साधन या सुबिधा दूर होती है, तो उसके अभाव से जो कष्ट होता है, जीव उसी कष्ट को दुःख समाझ बैठा है।जीव पूरा जीवन इसी सुख- दुःख की कश्मकश में व्यतीत कर लेता है। और क्योंकि ये शरीर के लिए है, जिस दिन शरीर नष्ट होता है, ये सुख-दुःख भी नष्ट होता है और हमारे साथ सिर्फ़ कर्म का परिणाम रह जाता है।
क्या ये जीवन सही है? क्या यहीं है मानव जीवन का लक्ष्य?... नहीं, ये शारीरिक- मानसिक सुख दुःख तो सांसारिक जीवन की मायाजाल का हिस्सा है।मानव जीवन का लक्ष्य है हमारे मूल स्वरूप का ज्ञान होना,और मूल स्वरूप(आत्मा) की खोज पूरी होने पर स्वतः मिलता है"आनंद"। आत्मा के स्तर पर ही सच्चे आनंदऔर दुःख की अनुभूति की जा सकती है।

जगत का हर एक धर्म शास्त्र हमारे मूल स्वरूप का ज्ञान और आनंद की प्राप्ति का मार्ग समझाता है।हमें हमारे मूलस्वरूप का ज्ञान हो जाय तो आनंद का अनुभव किया सकता है।यह कैसे प्राप्त हो:-शास्त्रों में आत्मा ज्ञान के तीन मार्ग बताये हैं। प्रभु ने गीता में भी कर्म मार्ग, ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग समझाया है।कर्म मार्ग और ज्ञान मार्ग से मूल स्वरूप का ज्ञान प्राप्त हो सकता है। और ये ज्ञान प्राप्त हो जाय तो मानव को सहजता प्राप्त होती है। जिससे जीव, जीवन के आनंद को उपलब्ध हो सकता है। और उससे आगे मोक्ष का आनंद भी अनुभव कर सकता है।

क्या है ये आनंद?आनंद जो बाह्य लौकिक साधन से प्राप्त हो वो नहीं। किसी भी वस्तु के पा लेने से मिले वो भी नहीं।पर बाँटने से बढ़े वो आनंद है, दूसरो की मदद करने से मिलती अनुभूति आनंद है, जो आस पास हों रहा है उसके साक्षी बन जाना, जो है उसको वेसा ही स्वीकार करना आनंद है, हर परिस्थिति में संतुष्टि आनंद है, जो हो रहा है, उसी को भोगना आनंद है, जिसको खोने का डर ना हो वो अहसास आनंद है। स्वाभाविक हो जाना आनंद है।सृष्टि के विकास के साक्षी बनो तो आनंद मिल सकता है। हम चाहे तो सृष्टि के कण कण में व्याप्त आनंद की अनुभूति कर सकते है। आनंद अनायास है। साधारण परिस्थिति, वस्तु में भी आनंद मिल सकता है, अगर हम "सहज" हो जाय।क्या है सहजता?

:- कैसे बने सहज?-सहज हो जाने का मतलब है सब परिस्थिति में समभाव. सुख-दुःख, लाभ-हानि,जय-पराजय, अमीरी-ग़रीबी, जैसे सब परिस्थिति में समभावना होना। जो सुख में ख़ुश नहीं होताऔर दुःख में दुःखी नहीं होता।श्री कृष्ण ने भी गीतजी में स्थितप्रज्ञ को योगी कहा है। जीवन को अपनी परिपूर्णता में अनुभव करना ही जीवन का लक्ष्य है। सम्पूर्ण स्वीकार और अपेक्षा रहित हो जाना सहजता है।

श्री राम और श्री कृष्ण ने भी अपने जीवन में सर्व परिस्थिति में समभावना रखकर सहजता का संदेश दिया है। और श्री वल्लभ ने भी हमें अपने जीवन और मार्ग के सिद्धांतो द्वारा सहजता में आनंद , और आनंद से परमानंद के अनुभव का मार्ग बताया।रसरूप,आनंद रूप प्रभु(परमानंद) की अनुभूति के लिए एक ही मार्ग है, और वो हे "भक्ति मार्ग"।

श्री वल्लभाचार्यजी और श्री गोपिनाथजी महाप्रभुने भूतल पर पधार कर "सहज प्रेम मार्ग" (रसमार्ग) से आनंद रूप प्रभु की अनुभूति के मार्ग की रचना करी।श्री वल्लभ ने और श्री गोपिनाथजी महाप्रभु नेश्रवण, सत्संग, वांचन द्वारा आत्म ज्ञान और प्रभु स्करूप का ज्ञान का मार्ग दिया - (श्री सुबोधिनि.. )शरणागति, समर्पण द्वारा- वैराग्य और वैराग्य से सहजता -(षोडश ग्रंथ..)स्तुति गान, प्रभु सेवा, सेवा रीत द्वारा प्रेम, भक्ति-- (साधन दीपिका, कीर्तन, ब्रह्मसंबंध.. )।यही है "सहज प्रेम मार्ग"।सृष्टि के कण कण में प्रभु के अंश का अनुभव ही आनंद है और प्रभु को भूलना सही मतलब से दुःख!" गुरुजी श्री गिरिराज जी शास्त्री जी"के प्रेरक प्रसंगो सेसंकलन कर्ता- जागृति