आनंद और सहजता" पाने के रास्तेभाग २


हमारे देश में अंधश्रद्धा एक व्यापक सामाजिक समस्या है। अच्छे, बुरे, कोई स्वयं को नुक़सान करने वाले तो कोई दूसरों को नुक़सान पहुचाने वाले, एसे कई प्रकार के अंधविश्वासों से लोग ग्रस्त हैं।किसी भी बात को बिना शास्त्रों के आधार के,बिना समझ के,मन मानी, स्वछन्द रीत से करना, और फिर उसी बात पर विश्वास करना अंधश्रद्धा है।सामान्य तौर से इस अंधश्रद्धा का कारण शिक्षा का अभाव माना जाता है। परंतु अंधश्रद्धा तो शिक्षित लोगों में भी हमें देखने को मिलती है।तो फिर किस शिक्षा की कमी का ये परिणाम है?हमारे मूल धर्म शास्त्रों के अभ्यास की कमी के कारण लोगों में, समाज मे, अंधश्रद्धा बढ़ी है। और हमारी इस धर्म के प्रति अज्ञानता के कारण ही आज के कई धर्म के प्रचारक कहे जाने वालो के द्वारा भ्रष्टाचार भी बहुत बढ़ा है।हज़ारो वर्षों से चले आ रहे परम्परागत हिंदू धर्म में कई प्रकार के भ्रम उत्पन्न हो गये हैं। जो हिंदुओ और दूसरे धर्म के अंतर्गत कई सवालों को जम्म देते है। भ्रम,जैसे कि हिंदू धर्म में बहुत सारे भगवान हैं, बहुत सारे धर्म ग्रंथ हैं, कई पूजा विधि और प्रार्थनाए हैं, कई सारे त्योहार हैं। हिंदू धर्म अनेक ईश्वरवादी है जिसका कोई एक स्थापक नहीं है..आदि।शास्त्र के पठन की कमी के कारण इन सब बात की सही जानकारी प्राप्त ना होने से ये सब भ्रम द्रढ़ होते गए। सुनी सुनाई बातो को ही लोग प्रथा मानने लगे। हिंदू धर्म ग्रंथ की व्यापक गणना और जनसामान्य में शिक्षा की कमी के कारण आम जन ग्रंथ के अभ्यास में प्रयत्न हीन होता गया और भ्रम द्रढ बनते गए और अंधश्रद्धा का रूप ले लिया।धर्म मानव जीवन का मूल स्तम्भ है। धर्म सहित जीवन के लिए, धर्म पालन के लिए, हमें हमारे धर्म ग्रंथ की प्राथमिक समझ -ज्ञान होना आवश्यक है। इसके द्वारा हमें हमारे धर्म मार्ग के चुनाव में भी आसानी होती है।वेद हिन्दु धर्म का एक मात्र मुख्य धर्म ग्रंथ है। जो मानवकृत नहीं, अपितु स्वयं ईश्वर से उत्पन्न हुएे हैं, और इस कारण ये अपरिवर्तनशील है। क्योंकि ये मानवकृत नहीं है, इसको श्रुति कहते हैं।आगे जाकर वेद को विषय अनुसार ऋषि मुनियों द्वारा वैदिक संस्कृत में चार हिस्सों में विभाजित किया गया। जो १)ऋग्वेद,२)यजुर्वेद,३)सामवेद, और ४)अथर्ववेद के नाम से है।इन वेदों के सार रूप उपनिषद है। उपनिषदों में वेदों का रहस्यमय ज्ञान है। मुख्य उपनिषद १०८ है। पर आगे जा कर अब तक ११०० से अधिक बताये गये है। इन सभी उपनिषद के सार रूप है " ब्रह्मसूत्र"। ब्रह्मसूत्र के सार रूप है "श्रीमद भागवत गीता"। और वेदों से श्रीमद् भागवद गीता तक के शास्त्रो के सार रूप "श्रीमद् भागवत्" की रचना हुई। जिसको श्री महाप्रभुजी भी अपने मार्ग, ग्रंथ का चतुर्थ आधार रूप मानते हैं।१८ पुराण हैं जो अलग अलग देवी देवता, भगवान के महत्व और उनकी अपार महिमा बताने वाली कहानी और बातें बताते है। विष्णु पुराण, शिव पुराण, श्रीमद् भागवत पुराण आदि.।महाभारत और रामायण हमारे ऐतिहासिक धर्म ग्रंथ है।हमारे यहाँ मुख्य दो प्रकार के ग्रंथ कहे गए।१) श्रुति ग्रंथ,२) स्मृति ग्रंथ।वेद को श्रु‍ति ग्रंथ कहा जाता है अर्थात जिन्होंने इसे सुना, श्रुति का अर्थ है सुना हुआ, यानि ईश्वर की वाणी जो प्राचीन काल में ऋषियों द्वारा सुनी और लिपिबद्ध की गई थी। और बाक़ी सभी ग्रंथ को स्मृति ग्रंथ कहते हैं। ऋषिमुनियों ने अपनी मूल स्मृति प्रज्ञा बुद्धि के द्वारा जो प्राप्त कर के उसको अपने शिष्यों को श्रवण के द्वारा स्मरण कराया। उनको स्मृति ग्रंथ कहते हैं।सामान्य धर्म के पालन हेतु "मनुस्मृति " नामक ग्रंथ है। जिसके आधार पर समाज और राष्ट्र संगठन के हेतु सिर्फ़ हमारे देश के ही नहीं परंतु दुनिया के देशों के क़ानून की रचना हुई।एसे हिंदू धर्म का एक ही मुख्य ग्रंथ है वेद। परंतु आम लोगो के लिए उसको पूरा पढ़ना और समझना नामुमकिन है, इस कारण बाक़ी सभी ग्रंथ की रचना हमारी सुविधा -समझ के हेतु हुई है। अगर इस बात की प्राथमिक समझ हम प्राप्त करें तो धर्म शास्त्र का अध्ययन हमें दूर से जितना कठिन और उलझाने वाला दिखता है, वो शायद ना लगे।अंधश्रद्धा बढ़ने का दूसरा कारण है, हमारे सभी पूजा, प्रार्थना,सेवा रीत की समझ का अभाव। और इसका कारण भी शास्त्र के अध्ययन का अभाव है। क्यों कि हमको हमारे धर्म, भगवान, शास्त्र, और हमारे पूजा विधि का ज्ञान नहीं है, हमें जो कहा जाता है उसी बात पर विश्वास कर लेते है। और उस रीत का अनुसरण करते है, जिसका वास्तव में कोई फल प्राप्त नहीं होता। संसार में हर एक संस्था, स्थल, कार्य की एक विधि होती है, एसे ही हमारी भक्ति साधना की सेवा,पूजा,जाप,ध्यान.. सब की भी विधि है। सभी धार्मिक क्रिया का पालन नियमित रूप से कब कैसे हो ये शास्त्र में बताया गया है, उस रीत से करना ज़रूरी है। बिना समझ की गयी धार्मिक क्रिया का कोई फल नहीं।पर क्योंकि हम सिर्फ़ हमारी ज़रूरत के लिए पूजा विधि करते है, और विधि कराने वाले भी इस बात का लाभ उठाते जाते हैं,एवं उनके फ़ायदे की विधि बताते हैं। और एसे ही अंधश्रद्धा का भाव द्रढ़ होता जाता है।अगर हम सिर्फ़ भक्ति हेतु भी पूजा, सेवा कर रहे हैं, परंतु हमें उन पूजा,सेवा रीत के पीछे रही भावना की समझ नहीं है, तब तो वो सिर्फ़ क्रियाएँ हो रही है।और एेसी क्रियाओं के फल स्वरूप भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती, जिस भक्ति के हेतु हम ये सब क्रिया विधि-विधान कर रहें हैं। शास्त्र सम्मत विधि ही हमारे जीवन को दिशा दे सकती है।जीवन में एक सद्गुरू का होना आवश्यक है। सद्गुरू के द्वारा भगवान को सही रूप में पा सकते हैं। सद्गुरू वो है, जो आप के अंदर के अहंकार और अंधकार को दूर करता है। सद्गुरू की आवशक्यता शास्त्रों के अध्ययन और उनके रहस्यो को समझने हेतु भी आवश्यक है। सद्गुरू आप के अंदर रही ग़लत धारणा और अधूरे ज्ञान को समाप्त कर के प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर चलने योग्य बनाता है। जिससे उस मार्ग के गंतव्य तक आप पहुँच सको,और प्रभु को पसंद आने वाला इंसान बन सको।जितने भी आत्म ज्ञान की प्राप्ति के धर्म और कर्तव्य बताये गए है उस मार्ग की सही समझ दे वो सद्गुरू है।परंतु हम गुरु,हमारे स्वार्थ हेतु, हमारी सांसारिक समस्या का हल और दुनियादारी के फ़ायदे के लिए बनाते है। बिना मेहनत हम सब मुश्किल का समाधान चाहते है, तब गुरु के शरण जाते है।जब कि गुरु बनाए नहीं जाते परंतु गुरु स्वयम् सिद्ध होते है। और गुरु शिष्य का निर्माण करते है। गुरु ही एक शिष्य, सेवक के व्यक्तित्व को बनाते।हमारी ग़लती के कारण हम उस परम तत्व तक नहीं पहुँच पाते हैं, ना ही गुरु को समझ पाते है, ना ही जीवन के रहस्यों को जान कर हम गुरु प्रेम और परब्रह्म के प्रेम को प्राप्त कर पाते हैं।क्यों कि हम स्वार्थ हेतु, सांसारिक लाभ हेतु गुरु के पास जाते है, इस लिए हमें भी बदले में उस गुरु से लौकिक फल ही प्राप्त होते हैं,जो कभी सुख और संतुष्टि देने वाले नहीं होते।हम हमारे लोभ की पूर्ति के हेतु गुरु बनाते हैं, बदले में धोखा मिलता है। ग़लती आम लोगों की भी है, पर फिर भी समाज में बदनाम सिर्फ़ गुरु वर्ग होता है।इस का भी कारण धर्म के ज्ञान की कमी है। हमारे शास्त्रों में सद्गुरू के रूप और गुण के बारे में स्पष्ट वर्णन है हमारे समझ हेतु। अगर हम वो समझ लें तो हमें निराशा नहीं मिलेगी।गुरु वो है जो प्रभु को मिलने के हेतु द्वार बने, दीवार नहीं।गुरुजी के प्रवचन से...संकलन कर्ता: जागृति गोहिल