पुष्टिमार्ग में श्री यमुनाजी का स्थान



श्री यमुनाजी पुष्टिमार्ग के प्रणेता हैं जीव में प्रभु ने पुष्टिभक्ति भाव के बीज का स्थापन किया है, पर जब तक उस जीव के भक्तिभाव को प्रकट करने की कृपा-इच्छा प्रभु नहीं करते तब तक जीव में रहा हुआ भक्ति भाव प्रकट नहीं होता। ऐसी कृपा प्रभु कभी स्वयं और कभी गुरु, तो कभी श्री यमुनाजी के माध्यम से करते हैं। प्रभु के कृपापात्र पुष्टि भक्ति भाव वाले दैवी जीवों के भगवद् भक्ति को बढ़ाने हेतु श्री यमुनाजी का भूतल पर प्राकट्य हुआ है। श्री महाप्रभुजी ने श्रीयमुनाष्टक स्तोत्र में "भुवंभुवन पावनीम्" अर्थात पृथ्वी को पवन करने वाली कहा है। श्री हरिरायजी यहाँ भावार्थ करते हैं कि भुवन अर्थात पुष्टि जीवों के देह रूपी भुवन को पावन करने वाले हे श्री यमुनाजी...
श्री यमुनाजी के तीन स्वरुप हैं
१) आधिभौतिक स्वरुप :- जल प्रवाह रूप (नदी स्वरुप )
२) अध्यात्मिक स्वरुप :- तीर्थ स्वरूप - श्रीयमुनाजी यमराज की बहन और सूर्य पुत्री हैं, श्रीयमुनाजी ने यमराज से वरदान माँगा था कि जो कोई भी यम द्वितीया के दिन मेरे प्रवाह में स्नान करे तो वह जीव यम यातना से और सर्व पापों से मुक्त हो। जीव यमुनाजी के अध्यात्मिक स्वरूप के माहत्म्य के ज्ञान के साथ यमुनाजी में स्नान/सेवन करे तब वो केवल नदी रूप न रह कर तीर्थ सेवन बनता है। जिस स्वरुप की स्तुति स्तोत्र द्वारा कई आचार्यो ने लिखी और करी है।
३) आधिदैविक स्वरुप, - चतुर्थ प्रिया रूप:-
श्री यमुनाजी का प्राकट्य दिवस पुष्टिमार्ग में चैत्र शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है जब श्री महाप्रभुजी पहली बार गोकुल पधारे तब वहां केवल सघन वन था। श्री महाप्रभुजी जब विश्राम घाट आये तब तय नहीं कर पाए थे की कौन सा ठकुरानी घाट है और कौन सा गोविन्द घाट! आपश्री ने श्रीदामोदरदास जी को पूछा तभी श्रीयमुनाजी १६ साल की युवती के रूप में जल प्रवाह के मध्य से प्रकट हुईं और श्रीमहाप्रभुजी को बताया कि आप जिस वृक्ष के नीचे बैठे हो वही गोविन्द घाट है और उसके दक्षिण में ठकुरानी घाट है।उन नव युवती को श्रीमहाप्रभुजी ने पहचान लिया कि यही श्रीयमुनाजी हैं और श्रीयमुनाजी को दंडवत कर श्रीयमुनाजी की स्तुति करी। जिसको हम "श्री यमुनाष्टक स्तोत्र" के रूप में जानते हैं और इस स्तुति के माध्यम से श्रीमहाप्रभुजी ने श्रीयमुनाजी के स्वरूप(ऐश्वर्य ) और माहत्म्य का दर्शन कराया।
केवल जल प्रवाह के रूप में ही श्रीयमुनाजी का सेवन हम नहीं करते अपितु श्रीमहाप्रभुजी ने हमें श्रीयमुनाजी के अधिदैविक स्वरुप का परिचय कराया है जिसकी आराधना और सेवन पुष्टिमार्ग में होती है। श्री व्रज में भानुगोप के यहाँ जमानावता गाँव में सखी स्वरुप चैत्र शुक्ल षष्ठी के दिन श्रीयमुनाजी का प्राक्टय हुआ है। व्रज में गोपीजन के चार मुख्य यूथ हैं जिनके अधिपति 1) श्री स्वामिनीजी , 2) श्री चंद्रवलीजी , 3) श्री ललिताजी, और 4) श्री यमुनाजी हैं। अलौकिक गुणों को धारण किये हुए निर्गुण गोपीजानों के यूथ के अधिपति हैं श्रीयमुनाजी। श्रीमहाप्रभुजी हमें इस रूप को पूजने की आज्ञा करते हैं।
श्रीयमुनाजी को संयोगिनी शक्ति कहा है, मुख्य दो रुप से श्री यमुनाजी भक्त पर कृपा करते हैं।।
1) अध्यात्मिक जल प्रवाह के रूप में दुःख हरने के लिए 'माँ' बन कर और
2) अधिदैविक चतुर्थ प्रिया के रूप में प्रभु की अलौकिक लीलाओ का अनुभव करा कर सुख देने वाली 'सखी' बन कर।
महात्म्य:-
श्री कृष्ण के अवतार के समय की कई अलौकिक लीलाओं की साक्षी श्रीयमुनाजी हैं। उस समय में प्रभु ने श्रीयमुनाजी में स्नान-पान के द्वारा किये हुए स्पर्श के कारण भगवद्भाव वाले भक्तो को तो श्रीयमुनाजी के जल का स्पर्श भी साक्षात् श्री कृष्ण के स्पर्श की अनुभूति देता है। प्रभु के चरण स्पर्श के कारण ही श्रीयमुना तट की रज भी अति पावन मानी जाती है। इस रज के स्पर्श से जीव के अंदर रहे भक्ति बाधक भाव दूर होते हैं।
ऐश्वर्य :-
श्रीयमुनाजी श्रीकृष्ण के सामान गुणधर्मो वाले हैं। श्रीयमुनाजी में रहे हुए पुष्टिभक्ति में सहायक ऐश्वर्य (शक्ति) को श्रीमहाप्रभुजी ने श्री यमुनाष्टक में दर्शाया है...
1) श्रीयमुनाजी हर प्रकार की पुष्टिभक्ति मार्ग की सिद्धियों को देने वाले हैं।
2) श्रीयमुनाजी प्रभु में भक्ति को बढ़ाने वाले हैं।
३) पुष्टि जीव और प्रभु के बीच आने वाले सभी विघ्नों को दूर करने वाले हैं।
4) श्रीयमुनाजी प्रभु के समान सरल हैं इस लिए प्रभु के साथ जीव का सम्बन्ध आसानी से जोड़ सकते हैं।
५) प्रभु के प्रिय जीवों में कलिकाल के कारण रहे हुए दोषों को दूर करते हैं।

६) श्रीयमुनाजी के सेवन से जैसे व्रजभाक्तों को प्रभु प्रेम का सुख प्राप्त हुआ ऐसे पुष्टि जीव भी प्रभु के प्रेम को पा सकते हैं।
७) श्रीयमुनाजी पुष्टि जीवों के देह को प्रभु सेवा में उपयोग में आने वाला अलौकिक बनाते हैं।
८) श्रीयमुनाजी का स्पर्श श्रीकृष्ण के स्पर्श के समान है।
ऐसे श्रीयमुनाजी अनंत गुणों को धारण करने वाले हैं। शिव, ब्रह्मा, जैसे देवता भी श्रीकृष्ण के दर्शन की लालसा से आपकी स्तुति करते हैं। वर्षा ऋतु के घने श्याम बादल के समान वर्ण वाली श्रीयमुनाजी अपने तट पर तपस्या करने वाले ध्रुव, पराशर जैसे तपस्वियों को मनवांछित फल देने वाले हैं।
पुष्टि जीव सदैव व्रज लीला को प्राप्त करना चाहते हैं और व्रजलीला की अधिष्टात्री श्रीयमुनाजी हैं, जिनके स्मरण, जलपान आदि से भक्तो की मनोकामना पूर्ण होती है,
श्रीयामुनाजी भक्तो को निज स्वरुप एवं श्री ठाकुरजी में अलौकिक प्रेम का दान कर के क्रमश: आसक्ति, और व्यसन दशा तक पंहुचा कर फल दशा का दान करते हैं।
श्रीमहाप्रभुजी की कृपा से पुष्टि मार्ग में प्रवेश मिलता है, और श्रीयमुनाजी की कृपा से वैष्णवता का अविर्भाव होता है और प्रभु के हृदय में प्रवेश मिलाता है इस लिए सर्व पुष्टि मार्ग के वैष्णव को हर रोज श्री सर्वोत्तम स्तोत्र और उसके बाद श्री यमुनाष्टक और श्री कृष्णाश्रय का पाठ अवश्य करना चाहिए।