श्री विट्ठलनाथजी प्रभुचरण



श्री महाप्रभुजी के द्वितीय लालजी श्री विट्ठलनाथजी, जिनको श्री प्रभुचरण, श्री परमदयाल और गुसाईंजी के नाम से भी वैष्णव जन संबोधित करते हैं, आपका प्राकट्य सवत १५७२ में चरणाट में हुआ था। श्री विट्ठलनाथजी ने अपने ज्येष्ठ भ्राता की तरह अल्पआयु में ही वेद-वेदांत,दर्शनशास्र,उपनिषद्,पुराण एवं विविध कलाओ का अध्ययन किया था। श्री विट्ठलनाथजी ने दो विवाह किया था। पहला विवाह रुकमनी वहूजी के साथ हुआ, जिनसे गिरिधरजी, गोविन्दरायजी, बालकृष्णजी,गोकुलनाथजी,रघुनाथजी, यदुनाथजी, शोभाजी, कमलाजी, देवकीजी और यमुनाजी हुए दूसरा विवाह पद्मावती वहूजी के साथ हुआ, जिनसे घनश्यामजी हुए।
श्री गोपीनाथजी और आपश्री के पुत्र श्री पुरुषोतमजी के गोलोकधाम निवास पश्चात गुसांईं जी पुष्टि संप्रदाय के आचार्य पद पर आसीन हुए।
श्री महाप्रभुजी के द्वारा स्थापित पुष्टि भक्ति मार्ग का प्रसार हेतु श्री विट्ठलनाथजी ने श्री महाप्रभुजी और श्री गोपिनाथजी की भांति भारत भ्रमण किया। साथ ही गुजरात का भी ६ बार प्रवास किया, व्रज और जगन्नाथपुरी की यात्रा करी और पुष्टि भक्ति का खूब विकास किया और अधिकारी वैष्णवों को शिष्यत्व प्रदान कर कृतार्थ किया।
श्री गुसाईंजी ने मार्ग के प्रचार के लिए निरंतर यात्रा करी और समाज एवं धर्म द्वारा उपेक्षित स्त्री, म्लेच्छ और शुद्र जाति के लोगो को भी शरण में लिया। आप श्री के शिष्यों में राजा-महाराजा से लेकर भिक्षुक, विद्वान से लेकर नादान लोगों का समावेश था। इस्लाम परिवार में जन्मे कई जीवों को भी आपने दीक्षा प्रदान की। शिष्यों में २५२ सेवक वैष्णव मुख्य हैं जिनका विवरण वार्ता साहित्य के ‘२५२ वैष्णव की वार्ता’ में मिलाता है।
तत्कालीन शासन वर्ग पर श्री विट्ठलनाथजी का अपूर्व प्रभाव था। सम्राट अकबर श्री विट्ठलनाथजी से अत्यंत प्रभावित थे। अकबर के दरबार के कई महानुभाव आपश्री के सेवक बन गए थे. राजा मानसिह, राजा टोडरमल, बीरबल, संगीतकार तानसेन। अकबर ने श्री विट्ठलनाथजी को कई राजकीय सुविधाए प्रदान की थी, जैसे व्रज के आस पास की भूमि जहां श्री विट्ठलनाथजी ने वर्तमान गोकुल गाँव बसाया।
श्री महाप्रभुजी द्वारा स्थापित पुष्टिमार्ग के सिद्धांत और फल पक्षों को पुष्टिमार्गीय वैष्णव अपने लौकिक-वैदिक कर्तव्यो को निभाते हुए दैनिक जीवन को कैसे सेवा-स्मरणमय बनाये उसका मार्गदर्शन ग्रन्थ रचना द्वारा किया और श्री गुसाईजी ने मार्ग का व्यापक प्रचार-प्रसार कर के चार चाँद लगाये। श्री गुसाईंजी ने अपने जीवन में साहित्य, संगीत, एवं विविध कलाओं को भगवतार्थ समर्पित करके उसको लौकिकता से अलौकिकता में परिवर्तित किया। संप्रदाय में कीर्तनकार, शिल्पी, चित्रकार, पाक कलाकार, संगीतज्ञ और भी कई कलाओं के निपुण वैष्णवों को आपश्री ने अपने सामर्थ्य से उपदेश द्वारा श्रीनाथजी की सेवा का अवसर प्रदान किया। साथ ही कई लोककला जैसे कि सांझी कला, रंगोली, जैसी अन्य कलाओं को भी वर्षोत्सव का हिस्सा बनाया।
श्री गुसाईजी ने श्री महाप्रभुजी से आगे बढ़कर प्रभु सेवा विस्तार के अनुसार ऋतु उत्सवों के अनुरूप अलग अलग राग में गायन करने का विधान किया है। जिसको पुष्टि संप्रदाय में कीर्तन के नाम से जाना जाता है। इस हेतु श्री विट्ठलनाथजी ने 'अष्टछाप' की स्थापना करी, जिसमे चार कवि श्री महाप्रभुजी के सेवक और चार कवि अपने समय के सेवक का समावेश है।
श्री गुसाईजी अत्यंत विद्द्वान आचार्य थे। अपने पिताश्री की भांति आपने भी कई ग्रंथो की रचना की है। पुष्टिमार्ग के सिद्धांतो के गूढ अर्थ की समझ अपने वंशज और वैष्णवों तक पहुचाने हेतु आपश्री ने भक्ति हंस, भक्तिहेतुनिर्णय, विद्दन्मंडन, गीतातात्पर्य निरूपण, जैसे कई ग्रंथो की रचना करी। स्मृति ग्रन्थ में श्री महाप्रभुजी के सम्पूर्ण चरित्र का निरूपण करता हुआ 'श्रीसर्वोत्तमस्तोत्र' आपश्री द्वारा रचित सबसे प्रचलित ग्रन्थ है।
श्री गुसाईजी धन वैभव को भगवद सेवा द्वारा सर्वथा उपयुक्त बना देना चाहते थे। तत्कालीन मुग़ल शासन में जिस प्रकार धन-संपत्ति और साधन विलास का दुरुपयोग हो रहा था, उससे वैष्णव समाज को दूर रखकर राग-भोग-शृंगार द्वारा उन सब का विनियोग भगवद सेवा में किया जाए, यही धन-संपत्ति और कला की सार्थकता को श्री विट्ठलनाथाजी ने प्रतिष्ठित किया।
देश के अन्य धर्माचार्यो और पुष्टि संप्रदाय में श्री गुसाईंजी का स्थान अनुपम है। न्यायकर्ता, कला, संगीत और साहित्य जैसे साधनों से सामाजिक अखंडता और एकता का समाज को योगदान देने के लिए श्री विट्ठलनाथजी प्रभु को कोटि कोटि नमन...